नक्सलियों का बाय-बाय मोमेंट: “अब जंगल नहीं, जॉब चाहिए”

संजीव पॉल
संजीव पॉल

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बताया है कि छत्तीसगढ़ में 170 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। और यह सिलसिला यहीं नहीं रुका — कल ही महाराष्ट्र में 61 नक्सली और छत्तीसगढ़ में 27 नक्सली मुख्यधारा में लौट चुके हैं।

“लगता है अब AK-47 छोड़ो, आधार कार्ड अपनाओ वाली मुहिम रंग ला रही है!”

अमित शाह की पोस्ट: “जो सरेंडर करेगा, उसका स्वागत है”

गृह मंत्री ने एक्स (Twitter) पर पोस्ट करते हुए कहा:

जो हथियार डालेंगे, उन्हें सरकार गले लगाएगी। लेकिन जो नहीं मानेंगे, उनके लिए हमारे पास जवाब है ।

उन्होंने दोहराया कि सरकार का लक्ष्य है:

“31 मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त करना।”

अब इसे कहें डेडलाइन या डेडली लाइन, लेकिन सख्ती तो पूरी है।

इतना बदलाव क्यों?

सुरक्षा बलों की बढ़ती कार्रवाई, विकास योजनाएं गांवों तक पहुंचना, और कुछ हद तक ‘थकान फैक्टर’ — सबने मिलकर नक्सलियों को आत्मसमर्पण की ओर धकेला है।

“लगातार जंगल में GPS के बिना घूमते-घूमते अब उन्हें Google Maps और जीवन बीमा दोनों चाहिए।”

“जब नक्सली बोले – भाई, अब गोली नहीं, सरकारी स्कीम चाहिए!”

सरेंडर करते हुए कुछ नक्सलियों ने कथित तौर पर कहा:

“अब लड़ाई नहीं लड़नी, बच्चों को स्कूल भेजना है।”

सुनने में आ रहा है कि कुछ नक्सली PM Awas Yojana और स्वच्छ भारत मिशन में भी जुड़ने को तैयार हैं — यानी ‘AK से शौचालय तक’ की यात्रा पूरी हो रही है।

2026 तक नक्सल फ्री इंडिया: मिशन मोड में सरकार

गृह मंत्रालय और CRPF लगातार लाल गलियारे में ऑपरेशन चला रही हैं।
सूत्रों के मुताबिक, सरकार अब इस दिशा में नक्सल इलाकों में तेज़ी से सड़क निर्माण। युवाओं के लिए स्किल डवलपमेंट। आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास योजनाएं दे रही है। “अब जंगल में बैठने से पेट नहीं भरता, और Google Pay में कोई ‘नक्सली कैशबैक’ स्कीम भी नहीं है।”

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